रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक कल्चर एंड थॉट के न्यायशास्त्र और कानून विभाग के निदेशक हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन ग़लाम रज़ा पेवंदी ने IKNA रिपोर्टर के साथ एक साक्षात्कार में, ज़ायोनी शासन के खिलाफ ऑपरेशन "सच्चा वादा" का जिक्र करते और कुरान के सिद्धांतों में वैध रक्षा और हमलावर को दंडित करने को समझाते हुऐ कहा: धार्मिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक मुद्दा जिहाद और रक्षा है। जिहाद और रक्षा दो महत्वपूर्ण शब्द हैं जिनकी धार्मिक शिक्षाओं में बार-बार चर्चा की गई है। इस चर्चा पर कुरान और हदीसों में विस्तार से चर्चा की गई है। कुरान में जिहाद शब्द का कई बार उल्लेख किया गया है, बेशक, इसका मतलब आंतरिक दुश्मन के खिलाफ जिहाद और इस्तेलाह में आत्म-साधना और स्वयं के साथ जिहाद, और बाहरी दुश्मन के खिलाफ जिहाद और बाहरी शत्रु के साथ संघर्ष दोनों मुराद हैं।
उन्होंने आगे कहा: कुछ आयतों में, पवित्र कुरान ने मुसलमानों को लड़ने और अपनी रक्षा करने की अनुमति दी है। खासकर उन लोगों के लिए जो युद्ध से मजबूर थे और उन पर अत्याचार किया गया है। कई आयतों में, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने सभी मुसलमानों और उन लोगों की रक्षा करने की अनुमति दी है जिनके शहर, घर और जीवन पर हमला किया गया है। जैसा कि वह सूरह हज की आयत 39 और 40 में कहता है; «أُذِنَ لِلَّذِینَ یُقَاتَلُونَ بِأَنَّهُمْ ظُلِمُوا وَإِنَّ اللَّهَ عَلَى نَصْرِهِمْ لَقَدِیرٌ؛ जिहाद का अधिकार उन लोगों को दिया गया है जिन पर युद्ध थोपा गया है और परमेश्वर उनकी सहायता करने में समर्थ है;
रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक कल्चर एंड थॉट के अकादमिक संकाय के एक सदस्य ने कहा: पवित्र कुरान की एक और रोशन आयत में, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने मुसलमानों को ईश्वर के रास्ते में अत्याचारियों, उत्पीड़कों और उन लोगों से लड़ने की अनुमति दी है जो आप और आपकी भूमि पर हमला करते हैं और लड़ते हैं।, जैसा कि सूरह आयत 190 में कहा गया है; «وَ قاتِلُوا فی سَبیلِ اللهِ الَّذینَ یُقاتِلُونَکُمْ وَ لا تَعْتَدُوا إِنَّ أللهَ لا یُحِبُّ الْمُعْتَدینَ»، और अल्लाह की राह में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़ते हैं, और बेशक, दैवीय सीमाओं से आगे न जाओ «ولاتعتدوا», क्योंकि सर्वशक्तिमान ईश्वर अपराधियों और उल्लंघन करने वालों से प्यार नहीं करता है
इस्लामिक संस्कृति और विचार अनुसंधान संस्थान के फ़िक़्ह और कानून विभाग के निदेशक ने कुरान और इत्रत में जिहाद की चर्चा का जिक्र करते हुए कहा: इस्लाम में, जिहाद के कई शीर्षक हैं; प्राथमिक जिहाद, रक्षात्मक जिहाद, जो दो सामान्य भागों में विभाजित है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी व्याख्या है, लेकिन सामान्य तौर पर, जिहाद कभी-कभी देशद्रोह को खत्म करने के लिए होता है। पवित्र कुरान बक़रह की आयत 193 में कहता है; «وَ قاتِلُوهُمْ حَتَّى لا تَکُونَ فِتْنَةٌ وَ یَکُونَ الدِّینُ لِلَّهِ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلا عُدْوانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِینَ، और काफ़िरों से तब तक लड़ो जब तक फ़ितना और भ्रष्टाचार धरती से ख़त्म न हो जाए, और अल्लाह का दीन हाकिम है, और यदि (फितना से) रुक जाऐं (तो उनके साथ न्याय करो, क्योंकि )गलत काम करने वालों के अलावा हिंसा की अनुमति नहीं है।'' सूरह अल-बक़रह की आयत 194 का जिक्र करते हुए उन्होंने आगे कहा: सर्वशक्तिमान ईश्वर कहता है; " «فَمَنِ اعْتَدی عَلَیْکُمْ فَاعْتَدُوا عَلَیْهِ بِمِثْلِ مَا اعْتَدی عَلَیْکُمْ وَاتَّقُواْ اللَّهَ وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِینَ،तो तुम उससे उतना ही लड़ सकते हो जितना वह करता है, और उतना ही लड़ो जितना वह करता है।" और निःसंदेह यह जान लो कि ईश्वर पवित्र लोगों के साथ है। यानि वह कहना चाहता है कि जब आप अपना बचाव कर रहे हैं तो आपको उनसे लड़ना भी चाहिए और संघर्ष भी करना चाहिए; इसलिए, उल्लिखित बातें कुछ प्रबुद्ध वहि के शब्दों और जिहाद और रक्षा के अधिकार के बारे में हैं।
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